स्पैनिश वैज्ञानिकों का प्रयास रंग लाया , नेत्रहीन के मस्तिष्क में प्रत्यारोपित 96 माइक्रो-इलेक्ट्रोड की एक सरणी में प्रेषित किए गए विद्युत संकेत.
स्पैनिश शोधार्थी अंधेपन को दूर करने के वर्तमान में किए गए प्रयासों से हटकर काम कर रहे हैं, आम तौर पर आंखों के प्रत्यारोपण या आंखों की कार्यक्षमता को बहाल करने के लिए सीमित शल्य प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता रहा है। हालांकि, स्पैनिश शोधकर्ताओं की टीम एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पर काम कर रही है, जिसमें आईबॉल्स को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए टीम एक एेसा उपकरण विकसित कर लिया है, जो एक सामान्य चश्मे पर लगे एक कृत्रिम रेटिना की तरह ही काम करता है। जिसकी टेस्टिंग पिछले साल से शुरू हुई और अब एक 57 साल की नेत्रहीन महिला पर सफल प्रयोग किया गया।
जिनकी आंखों की रोशनी चली जाती है, उनसे पूछो कि जिंदगी कैसी बेरंग सी लगती है। और जो जन्म से नेत्रहीन पैदा होते हैं, उन्हें आंख मिल जाए, तो उनसे पूछो जिंदगी में रंगों के क्या मायने हैं। अब दोनों तरह की स्थिति का समाधान स्पेन के शोधार्थियों ने खोज निकाला है।'जर्नल ऑफ क्लिनिकल इंवेस्टिगेशन' में नई खोज को प्रकाशित किया गया है, जिसके अनुसार स्पैनिश वैज्ञानिकों ने एक खास तरह की चिप या उपकरण की खोज कर ली है, जिससे नेत्रहीन लोग देख पाएंगे। इसके जरिए नेत्रहीन व्यक्ति के कॉरटेक्स सक्रिय हो जाते हैं। यहां जिस उपकरण को विकसित करके उसका प्रयोग किया जा रहा है, वह एक दृश्य क्षेत्र से प्रकाश को उठाता है और उसे चश्मे के सामने प्रस्तुत कर देता हैं, ये सारा काम विद्युत संकेतों में एंकोड होता है जिसे मस्तिष्क समझ सकता है। फिर इन्हें उपयोगकर्ता के मस्तिष्क में प्रत्यारोपित 96 माइक्रो-इलेक्ट्रोड की एक सरणी में प्रेषित किया जाता है। यह एक प्रकार का कृत्रिम रेटिना है। इस रेटिना की चौड़ाई लगभग 4 मिमी (0.15 इंच) होती है और प्रत्येक इलेक्ट्रोड 1.5 मिमी (0.05 इंच) लंबा होता है। ये इलेक्ट्रोड मस्तिष्क के विजुअल कॉर्टेक्स के सीधे संपर्क में आते हैं। यहां, वे दोनों न्यूरॉन्स को डेटा फीड करते हैं और उनकी गतिविधि पर निगरानी रखते हैं।
टीम ने अब तक इस तरह के दृष्टिकोण की वैधता पर उत्साहजनक डेटा प्राप्त कर लिया था। उन्होंने पिछले साल प्राइमेट्स पर अपने सिस्टम के 1,000-इलेक्ट्रोड संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया (हालांकि जानवर अंधे नहीं थे)। हाल ही में, उन्होंने एक 57 वर्षीय महिला के साथ काम किया, जो 16 साल से अधिक समय से नेत्रहीन थी। एक प्रशिक्षण अवधि के बाद, उसे यह सिखाया गया कि डिवाइस द्वारा निर्मित छवियों की व्याख्या कैसे करना है और उसने अक्षरों और कुछ वस्तुओं की रूपरेखा को सफलतापूर्वक पहचान लिया।
इस प्रकार के माइक्रोइलेक्ट्रोड के साथ विजुअल परसेप्शन्स को प्रेषित करने के लिए आवश्यक विद्युत प्रवाह की मात्रा मस्तिष्क की सतह पर रखे गए इलेक्ट्रोड के साथ आवश्यक मात्रा से बहुत कम है, इसका मतलब है अधिक सुरक्षा।
प्रो. फर्नांडीज जोवर, शोध-प्रमुख,
सेलुलर बायोलॉजी विभाग, मिगुएल हर्नांडेज़ विश्वविद्यालय, स्पेन
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