रिसर्च ने बताया : साल नदी का पानी गंदा हो चुका है
भारत की अधिकतर नदियों का जल प्रदूषण और अन्य माइक्रोब्स की मिलावट के कारण पीने योग्य नहीं रहा है, हाल ही में नए अध्ययन से खुलासा हुआ है कि दक्षिण गोवा की साल नदी माइक्रोप्लास्टिक्स (एमपी) की वजह से इतनी अधिक प्रदूषित हो गई है कि नलों के जरिए घरों तक पहुंचने वाले पानी में भी माइक्रोप्लािस्टक के अंश मिलते हैं। माना जाता है कि माइक्रोप्लास्टिक्स सड़क की सतह पर मोटर वाहन के टायरों की घर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं और हवा के रुख से नदी तक पहुंचते हैं।अध्ययन में क्या क्या मिला
गोवा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी एंड एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं द्वारा साल नदी में किए गए इस तरह के पहले अध्ययन में साल नदी में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति पाई गई है। इसके अलावा स्कूल ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी) ने भी खुलासा किया है कि साल नदी के पानी में तीन प्रमुख पॉलिमर की उपस्थिति है। जैसे पॉलीएक्रिलामाइड, जो कि खनन उद्योग से जुड़ा एक पानी में घुलनशील सिंथेटिक एजेंट है, इथलीन-विनाइल अल्कोहल, जो पैकेजिंग में इस्तेमाल किया जाने वाला घटक है और तीसरा एंजेट है पॉलीएसिटिलीन, जोकि एक विद्युत चालक है।
माइक्रोप्लास्टिक पांच मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के महीन टुकड़े होते हैं जो समुद्रों की परिस्थितिकीतंत्र और जलीय जीवन के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
अध्ययन में शामिल घटक
अध्ययन में बायोटा के बीच शेल फिश, फिनफिश, क्लैम्स और सीप के नमूनों की जांच की गई है। अध्ययन में कहा गया है, दिलचस्प बात यह है कि साल मुहाना के तीनों मैट्रिसेस, पानी, तलछट और बायोटा में पाए जाने वालों में फाइबर (क्रमश: 55.3% , 76.6% और 72.9%) का कब्जा था, इसके बाद टुकड़े और अन्य प्लास्टिक थे। तीनों मैट्रिक्स में फाइबर की अधिकता विभिन्न स्रोतों की ओर संकेत करती है, जिनमें घरेलू सीवेज, उद्योगों और कपड़े धोने से निकलने वाले अपशिष्ट शामिल हैं।
टायरों के घर्षण के कारण
शोध में पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलियामाइड, पॉलीएक्रिलामाइड पॉलिमर युक्त तलछट के साथ नदी के पानी में पारदर्शी गोलाकार बीड भी पाए गए। उनके अनुसार, ये पर्सनल केयर उत्पादों, कपड़ों और अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों से उत्पन्न हो सकते हैं। विशेष रूप से, शेलफिश और फिनफिश के नमूनों में ऐसे कोई बीड नहीं पाए गए थे। सबसे अधिक पाए जाने वाले माइक्रोप्लासिट्क्स काले रंग (43.9 प्रतिशत) के थे, इनके लिए अध्ययन का दावा है कि ये माइक्रोप्लासिट्क्स नियमित रूप से टूट-फूट के रूप में सड़क की सतहों पर टायरों के घर्षण के कारण उत्पन्न होकर पर्यावरण में आ सकते हैं। शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन मुहाने के वातावरण में माइक्रोप्लासिट्क्स की प्रचुरता को समझने और कैसे ये कण सीफूड के रूप में इंसानों तक पहुंच सकते हैं, के लिए किया गया था।
शेलफिश में एक संभावित खतरा है
अध्ययन में कहा गया है, शंख में एमपी की औसत संख्या 2.6 एमपी/ग्राम है। एक अनुमान के आधार पर, गोवा के लिए अकेले शेलफिश का वार्षिक सेवन प्रति व्यक्ति 8084.1 कण होगा, इसलिए शेलफिश में एक संभावित खतरा देखा जा सकता है। शेलफिश एक स्थानीय व्यंजन है और पर्यटकों द्वारा इसका सेवन खूब किया जाता है। यह शोध देश के शीर्ष समुद्री अनुसंधान संस्थानों में से एक, एनआईओ द्वारा दिल्ली स्थित एक पर्यावरण परामर्श फर्म के साथ किए गए ।
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