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मेघालय की मॉस्मई गुफा में मिली सूक्ष्म घोंघे की प्रजाति | New discovery of Micro snail species in meghalaya after 170 year

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 मेघालय में सूक्ष्म घोंघे की प्रजाति का लंबे समय बाद मिलना जीवन विज्ञान अनुसंधान में एक बड़ी सफलता है। सबसे खास बात जिओरिसा प्रजाति की अब तक की दोनों खोजें मेघालय राज्य से हैं।
 आज से 170 साल पहले 1851 में पिछली बार भारत में जिओरिसा जीनस की एक प्रजाति की खोज हुई थी और इस खोज के बाद हाल में मेघालय में एक चूना पत्थर की गुफा मॉस्मई से जिओरिसा मॉवस्मेंसिस (Georissa mawsmaiensis) नाम की एक सूक्ष्म घोंघे की प्रजाति की खोज की गई है। इसकी लंबाई सिर्फ 2 मिमी. है।
1851 में ब्रितानी मोलस्क विज्ञानी विलियम. हेनरी बेंसन द्वारा जिओरिसा सरिट्टा की खोज चेरापूंजी के पास मुस्माई (वर्तमान मॉस्मई) घाटी से हुई थी। अब की बार खोज अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (एटीआरईई), बेंगलुरु के निपु कुमार दास और नीलावर अनंतराम अरविंद द्वारा हुई हैं, जिसे *जर्नल ऑफ कॉन्कोलॉजी* में स्थान मिला है। ये दोनों शोधार्थी  (दास और अरविंद) मॉस्मई गुफा में खोजयात्रा पर गए थे।

 अगस्त 2018 के पहले सप्ताह के दौरान मॉस्मई गुफा के एक क्षेत्र-सर्वेक्षण के दौरान जियोरिसा के नमूने एकत्र किए। नमूने गुफा के प्रवेश द्वार के अंदर लगभग 4-5 मीटर नम चूना पत्थर की चट्टानों की सतह से एकत्र किए गए थे, जहां कुछ कृत्रिम रोशनी को छोड़कर गुफा में अंधेरा था। मिट्टी सने खोल से घोंघों को निकालने के लिए नमूनों को पानी से सावधानीपूर्वक धोया गया और निकॉन स्टीरियो माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखा गया। शोधार्थियों ने अपने इन नमूने की तुलना जी सरिट्टा बेंसन, 1851 की तस्वीरों से की, जो लंदन में प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के टॉम व्हाइट ने उन्हें तस्वीरें उपलब्ध कराईं थीं।

दास और अरविंद के अनुसार, जैव विविधता में समृद्ध होने के बावजूद, भारत के इस क्षेत्र में खोज नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि मेघालय और भारत के अन्य हिस्सों में चूना पत्थर की गुफाओं के एक और व्यापक सर्वेक्षण से दिलचस्प घोंघे के जीव मिल सकते हैं, जिसमें जिओरिसा की कई नई प्रजातियां शामिल हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं को चिंता है कि गुफा में उच्च पर्यटक प्रवाह प्रजातियों के लिए एक बड़ा खतरा होगा। मेघालय में अब तक लगभग 1,700 गुफाओं की पहचान की जा चुकी है और कई गुफाओं की खोज की जानी बाकी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि केवल सिजू गुफा अपने जीवों के लिए अच्छी तरह से प्रलेखित है और अन्य गुफाओं पर बहुत सीमित अध्ययन किए गए हैं।

जिओरिसा जीनस के सदस्यों को व्यापक रूप से अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र से वितरित और रिपोर्ट किया जाता है। हालांकि, वे चूना पत्थर की गुफाओं या चूना पत्थर के विघटन से बनने वाले कारस्ट परिदृश्यों से युक्त सूक्ष्म आवासों तक ही सीमित हैं।  जिओरिसा तराई के उष्णकटिबंधीय जंगल के साथ-साथ उच्च ऊंचाई वाले सदाबहार जंगलों या कैल्शियम से भरपूर चट्टानी सतहों पर मिट्टी या भूमिगत आवासों में पाया जाता है।


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जिओरिसा मॉवस्मेंसिस अपने खोल की बनावट में जिओरिसा सरिट्टा से अद्वितीय है। इसकी अपनी शंक्वाकार विशेषताओं में भिन्नता दिखाई देती है, जिसमें प्रमुख घुमावदार धारियां और बॉडी वॉर्ल पर कुछ अन्य घुमावदार धारियां शामिल हैं, जो जिओरिसा सरिट्टा में सात हैं।
 निपु कुमार दास, खोजकर्ता, एटीआरईई


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मेघालय की गुफा में रहने वाले घोंघे की पांच प्रजातियों की सूचना मिली है, जबकि और भी प्रजातियां हो सकती हैं, जो खोज की प्रतीक्षा कर रही हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में, जहांं ऐसी ही गुफाएं मौजूद हैं, ऐसी 100 से अधिक प्रजातियों के बारे में बताया गया है।
नीलावर अनंतराम अरविंद , खोजकर्ता, एटीआरईई

somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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