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सिंधु घाटी सभ्यता का सुराग निकलकर सामने आ सकता है | Clues of Indus Valley Civilization may emerge

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 6,000 साल पहले जलवायु परिवर्तन के संकेतों के लिए सिंधु घाटी सभ्यता के शेल्स का अध्ययन 
आज से 6000 से 4000वर्ष पहले की जिस जयवायु परिवर्तन ने सिंधु घाटी सभ्यता (आईवीसी) को प्रभावित किया था, इसी समान जलवायु परिवर्तन के प्रति मानवीय प्रतिक्रिया को समझने का प्रयास करने जा रही है भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम

कुछ अलग सुराग निकलकर सामने आ सकता है

 भारी बारिश, सूखा, रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और ठंड के साथ-साथ तेजी से घटते बर्फ के आवरण, जिसे आज पूरी दुनिया देख रही है,  ये जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हो सकते हैं। इसी तरह आजकल सारे विश्व में जलवायु परिवर्तन देखा जा रहा है, ये एक अच्छा मौका है भारतीय शोधकर्ताओं के लिए, जिसमें सिंधु घाटी सभ्यता के पतन होने का कुछ अलग सुराग निकलकर सामने आ सकता है। 
 

जैविक संबंध ( यदि कोई हो) को खोजना

 एसईआरबी-विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना के तहत, शोधकर्ता मुख्य रूप से सिंधु घाटी सभ्यता के कई क्षेत्रों से शेल्स का अध्ययन करेंगे।  इस परियोजना का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के लिए लगभग 2,000 ईसा पूर्व से शुरू उस जैविक संबंध ( यदि कोई हो) को खोजना है, जिसने  सभ्यता के पतन में योगदान दिया हो। अध्ययन पुणे स्थित डक्कन कॉलेज पोस्ट ग्रेजुएट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट और आईआईटी-खड़गपुर द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा।
 

लौह युग के दौरान के संकेत

पहले इस कंसोर्टियम ने जो काम किया जाता है, उसमें भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, कच्छ विश्वविद्यालय, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण  के शोधकर्ता शामिल रहे थे, जिन्होंने सांकेतिक तौर पर सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए संभावित वैश्विक सूखे को वजह बताया था। वैज्ञानिकों ने संकेत दिया कि इससे लौह युग के दौरान कच्छ में करीम शाही जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में सभ्यता के लोगों का स्थानान्तरण या प्रवास हो सकता है।
 
हम सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान उपमहाद्वीप में जलवायु परिवर्तन के संचालकों को समझने का इरादा रखते हैं कि किस प्रकार पिछले मानसून ये ताकतें जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए कितनी संवेदनशील रही थीं। एक अन्य लक्ष्य यह भी देखना है कि कितनी तेजी से, उदाहरण के लिए, मानसून में परिवर्तन हुए, जिसका आधुनिक जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव पड़ सकता है।
 प्रोफेसर अनिंद्य सरकार,
प्रोजेक्ट में सह-अन्वेषक
 
 
धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किए जाने के उपरान्त ये गुजरात में तीसरा ऐसा स्थल बन गया, जो सिंधु घाटी सभ्यता की दृष्टि से भी अहम है। इस  परियोजना के तहत पुरातात्विक स्थलों से भूमि से उपस्थित शैल्स में आइसोटोप्स (समस्थानिकों) का अध्ययन होगा, ताकि सदी-स्तर के समय-समय पर जलवायु में पिछले परिवर्तन वाले सभी  डेटा प्राप्त किया जा सकें। 
 

2024 में समाप्त होने वाली इस तीन साल की परियोजना में प्रारंभिक काम के अलावा गुजरात और हरियाणा में कुछ चिन्हित स्थलों का दौरा भी शामिल है।


शेल्स की अहम भूमिका रही होगी

शैल्स जीवन का हिस्सा थे। भोजन या आभूषण बनाने के लिए इनका (सीप के रूप में ) उपयोग लंबे समय से जाना जाता है लेकिन उनका अध्ययन पिछले जलवायु के रूप में नहीं किया गया है।  पुरातत्त्वविदों और भूवैज्ञानिकों द्वारा पिछला काम हड़प्पा स्थलों से बहुत दूर, जो पुरातात्विक स्थलों की एेसी जलवायु का बिल्कुल प्रतिनिधि नहीं करते, वहां के ज्यादातर स्थानों जैसे समुद्र, नदी या झील तलछट कोर पर केंद्रित रहा था। 

कहां कहां होगा अध्ययन

हरियाणा में राखीगढ़ी और भिराना, गुजरात में धोलावीरा, कुंतासी, कनमेर और सुरकोटडा और राजस्थान में  कालीबंगन में बड़ी संख्या में सिंधु घाटी सभ्यता की साइटों का अध्ययन किया जाएगा।
आमतौर पर कच्छ के रण में धोलावीरा जैसे कई साइटों पर समुद्री और मीठे पानी से उत्पन्न शेल्स पाए जाते हैं।
आरती देशपांडे-मुखर्जी, पुरातत्वविद्,    
प्रमुख परियोजना अन्वेषक,  डेक्कन कॉलेज।

 

somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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