हाईबोडॉन्ट शार्क होने का खुलासा
पहली बार राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र के जुरासिक चट्टानों , जो लगभग 160 और 168 मिलियन वर्ष पुरानी हैं, वहां पर हाईबोडॉन्ट शार्क होने का खुलासा हुआ है। इस दुर्लभ खोज को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के पश्चिमी क्षेत्र जयपुर के अधिकारियों की टीम में शामिल कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे, त्रिपर्णा घोष और देबाशीष भट्टाचार्य ने की है। टीम ने पहली बार जैसलमेर से जुरासिक युग के हाइबोडॉन्ट शार्क की नई प्रजातियों के दांतों की जानकारी हासिल की है। इस खोज को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिस्टोरिकल बायोलॉजी, जर्नल ऑफ पैलियोन्टोलॉजी के अगस्त के चौथे अंक में प्रकाशित किया गया है।
एक नया दरवाजा खोलता अध्ययन
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की के पृथ्वी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष के प्रो. डॉ. सुनील बाजपेई, जो इस प्रकाशन के सह-लेखक हैं, ने इस महत्वपूर्ण खोज की पहचान और दस्तावेजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह खोज राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में जुरासिक वर्टीब्रेट जीवाश्मों के अध्ययन में एक मील का पत्थर है और यह वर्टीब्रेट जीवाश्मों के क्षेत्र में आगे के शोध के लिए एक नया दरवाजा खोलती है।
क्रेटेशियस युग के अंत में हाइबोडॉन्ट विलुप्त हो चुकी थी
पश्चिमी क्षेत्र के पेलियोन्टोलॉजी डिवीजन के वरिष्ठ भूविज्ञानी कृष्ण कुमार के अनुसार, क्षेत्र के जुरासिक चट्टानों (लगभग 160 और 168 मिलियन वर्ष पुराने) से पहली बार हाईबोडॉन्ट शार्क की सूचना मिली है। हाईबोडॉन्ट, शार्क का एक विलुप्त समूह, ट्राइसिक और प्रारंभिक जुरासिक युग के दौरान समुद्र और नदी के दोनों वातावरणों में पाए जाने वाली मछलियों का एक प्रमुख समूह था। हालांकि, मध्य जुरासिक से समुद्री वातावरण में हाईबोडॉन्ट शार्क का पतन शुरू हो गया था। 65 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस युग के अंत में हाइबोडॉन्ट अंततः विलुप्त हो गईं।
जैसलमेर से खोजे गए नए टूटे हुए दांत को अनुसंधान दल द्वारा नामित एक नई प्रजाति 'स्ट्रोफोडसजैसलमेरेंसिस' का बताया गया है। भारतीय उपमहाद्वीप से पहली बार जीनस स्ट्रोफोडस की पहचान की गई है और यह एशिया से केवल तीसरा ऐसा मामला है। इसके पहले जापान और थाईलैंड में ऐसी प्रजाति पाई गई थी। नई प्रजातियों को हाल ही में 'शार्करेफरेंस.कॉम' में शामिल news/Teeth of S. jaisalmerensis, a new Jurassic era shark from Rajasthan foundकिया गया है, इस पोर्टल को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन), स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन (एसएससी) और जर्मनी के सहयोग से संचालित किया जाता है।
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