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धान की देसज किस्मों से मिट सकती है महिलाओं में कुपोषण की समस्या | The problem of malnutrition among women can be eradicated by indigenous varieties of paddy

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शोधकर्ताओं की नजर में धान की दर्जन भर एेसी भारतीय किस्में आ गई हैं, जो पोषण को बढ़ावा देने में सक्षम हैं, हालांकि धान देने योग्य बात यह भी है कि ये  किस्में खेतों में कम उगाई जाने के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। ताजा एक अध्ययन में यह दावा प्रस्तुत हुआ है कि शोधकर्ताओं द्वारा जांचे गए भारतीय धान की एेसी 12 एेसी लोक किस्में या पारंपरिक धान हैं, जो कुपोषित माताओं में महत्वपूर्ण फैटी एसिड की पोषण संबंधी मांग को पूरा कर सकती हैं।  खास बात,  स्तनपान के जरिए नवजात शिशुओं को इनसे एराकिडोनिक एसिड (एआरए) और डोकोसाहेक्सैनोइक एसिड (डीएचए) मिल सकते हैं। डीएचए और एआरए स्तन के दूध में पाए जाने वाली फैटी एसिड हैं, साथ ही ये कुछ खाद्य पदार्थों जैसे मछली और अंडे में भी पाए जाते हैं।

 94 देशी धान की किस्मों का अवलोकन हुआ

यह अध्ययन करंट साइंस में प्रकाशित हुआ था। इस अध्ययन  का शीर्षक 'रेयर एंड नेग्लेक्टेड राइस लैंडरेसेज एज अ सोर्स अॉफ फैटी एसिड्स फॉर अंडरनॉरिश्ड इंफैन्ट्स' है, इसके अनुसार, ये किस्में बाजार में बिकने वाले फॉर्मूला खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक लागत प्रभावी और विश्वसनीय हैं। अध्ययन के दौरान भारत की 94 देशी धान की किस्मों में पोषक तत्वों की दृष्टि से महत्वपूर्ण फैटी एसिड (एफए) का अवलोकन किया गया।, जिनके लुप्त होने का खतरा है। इनकी खेती कुछ सीमांत किसानों द्वारा की जाती है। इनमें पाई जाने वाली फैटी एसिड को  गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्रिक विश्लेषण के आधार पर जांचा गया और पाया कि ये गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से दैनिक पोषण को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान देते रहे हैं। 

रोग प्रतिरोधक हैं ये किस्में

ये पारंपरिक चावल की प्रजातियां मुख्य आहार में आवश्यक फैटी एसिड्स को जोड़ सकती हैं, जो नवजातों के सामान्य मस्तिष्क विकास में आवश्यकता को पूरा कर सकती हैं। इन किस्मों में  विभिन्न प्रकार के फैटी एसिड के अलावा विटामिन, खनिज, स्टार्च और थोड़ी मात्रा में प्रोटीन भी होता है। ये बताना भी जरूरी है कि  लोक चिकित्सा में स्तनपान कराने वाली महिलाओं में दूध उत्पादन को बढ़ाने के लिए एथिकराय, दूध-सर, कयामे, नीलम सांबा, श्रीहती, महाराजी और भेजरी जैसी धान की कई लोक किस्मों को जाना जाता है।  अन्य पारंपरिक किस्में जैसे केला, दूधेबोल्ता और भुटमूरी एनीमिया के इलाज के लिए माताओं के आहार में शामिल की जा सकती हैं। इनमें आयरन की बहुतायत होती है। असम से बाओ-धान (लाल चावल) की पहली निर्यात खेप मार्च 2021 में अमेरिका भेजी गई थी। लौह युक्त ये लाल चावल असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में बिना किसी रासायनिक उर्वरक के उपयोग के उगाया जाता है। 

उत्तर पूर्व भारत की सात चावल की किस्में - मेघालय लकांग, चिंगफोरेल, मनुइखमेई, केमेन्याकेपेयु, वेनेम, थेकरुला, और कोयाजंग में चावल के पौधों में पत्ती और गर्दन विस्फोट रोग का प्रतिरोध करने की अनोखी क्षमता है।

इस अध्ययन में शामिल भारत, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के शोधकर्ताओं ने इन पारंपरिक भूमि को भारत की खाद्य और कृषि नीति में शामिल करने की सिफारिश की। हालांकि, उच्च उपज वाले हाइब्रिड धान ने  पारंपरिक भूमि यानी लैंडरेसेज में उगने वाले धान की किस्मों को आगे नहीं बढ़ने दिया, जिस वजह से ये लुप्त होने के कगार पर आ गए। 

 94 लैंडरेसेज से धान की लोक किस्मों के नमूने देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से जमा किए गए हैं और उनको ओडिशा स्थित  बसुधा फार्म ( रायगड़ा जिला) के जर्मप्लाज्म बैंक में संरक्षित किया गया है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में  कुल अल्पपोषण, बाल स्टंटिंग, वेस्टिंग और बाल मृत्यु दर के आधार पर जनसंख्या  की गणना में 107 देशों की सूची में भारत को 94वां स्थान मिला है। अगर पोषक तत्वों से भरपूर चावल की इन उपेक्षित और लुप्त होती प्रजातियों को उचित संरक्षण प्रदान किया जाए, तो  यह भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मददगार हो सकता है। ये पारंपरिक धान की किस्में, वर्तमान में उगाई जाने वाली उच्च उपज देने वाली किस्मों की तुलना में एक सस्ता विकल्प भी हो सकता है।
somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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