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प्रवाल की भित्तियां घट रहीं, प्रभावित हो रही जैव विविधता | Decreasing coral reefs, affecting biodiversity

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1950 के दशक के बाद से मछली जैव विविधता और बायोमास में लगभग 60 प्रतिशत की गिरावट आई भित्तियों के क्षरण से तटीय समुदायों पर खतरा बढ़ने लगा

 



समुद्र के भीतर का जीवन भी जयवायु प्रदूषण और अन्य कई कारणों से खतरे में पड़ गया है।  एेसा पाया गया है कि1950 के बाद से मछली की जैव विविधता और बायोमास में लगभग 60 फीसदी की कमी देखने को मिली है। साथ ही,  समुद्री चट्टानों या भित्तियों के क्षरण से तटीय समुदायों पर भी खतरा बढ़ने लगा है।

 एक शोध जर्नल 'वन अर्थ' में प्रकाशित हुआ है, जो कहता है कि जलवायु परिवर्तन, अावश्यकता से अधिक मछली पकड़ने, कई प्रकार के प्रदूषण और अन्य मानवीय गतिविधियों के असर ने 1950 के दशक से प्रवाल की  भित्तियों का आकार आधे से अधिक कम रह गया है। इस अध्ययन को ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नेतृत्व प्रदान किया और उन्होंने  'पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं' पर इन परिवर्तनों के असर पर पहली व्यापक तथा वैश्विक नजर डाली। यह अध्ययन मनुष्यों को आवश्यक लाभ देने करने के लिए प्रवाल भित्तियों की क्षमता को संदर्भित करता है।

 हमारे विश्लेषण से संकेत मिलता है कि पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रवाल भित्तियों की क्षमता में लगभग आधी गिरावट आई है।
   विलियम चेउंग,
   शोध-पत्र लेखक और समुद्री जीवविज्ञानी, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय

'कैच-पर-यूनिट-प्रयास'

अध्ययन करने वालों ने पाया कि प्रवाल भित्तियों के कवरेज के नुकसान से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में समान कमी आई है और मछली जैव विविधता और बायोमास में 60 फीसदी का नुकसान हुआ है। दल ने चेतावनी दी है कि वैश्विक प्रवाल भित्ती तंत्र के निरंतर क्षरण से तटीय, इन भित्तियों पर निर्भर समुदायों के लाभ और विकास को खतरा होगा। यह अध्ययन इस बात के महत्व को बताता है कि हम न केवल क्षेत्रीय पैमाने पर, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रवाल भित्तियों का प्रबंधन कैसे करते हैं, साथ ही उन समुदायों की आजीविका का प्रबंधन, जो उन पर निर्भर हैं। टीम ने पाया कि प्रवाल भित्तियों के क्षेत्र में मछलियों के पकड़ने के प्रयास लगभग दो दशक पहले अपने चरम पर थे और इसे रोकने के बढ़ते प्रयासों के बावजूद भी तब से ही गिरावट देखी गई।

वास्तव में,बायोमास में परिवर्तन के संकेतक के रूप में जिस  'कैच-पर-यूनिट-प्रयास' का आमतौर पर उपयोग किया जाता है, उसके अनुसार, 1950 की तुलना में यह 60 प्रतिशत कम पाया गया है, साथ ही प्रवाल चट्टानों पर रहने वाली प्रजातियों की विविधता भी कम पाई गईं।

 किन-किन पहलुओं पर शोध हुआ

 डॉ एडी और उनके सहयोगियों ने भित्ती तंत्र के पांच पहलुओं को देखा- जिसमें  जीवित प्रवाल का आवरण,   संबद्ध मछली पकड़ना  और प्रयास, फूड-वेब पर मछली पकड़ने में अंतर,  प्रवाल भित्तियों से जुड़ी जैव विविधता तथा  तटीय  स्वदेशी लोगों द्वारा समुद्री भोजन की खपत। उन्होंने अध्ययन के लिए डेटा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया था, जिसमें प्रवाल भित्ती सर्वेक्षण, जैव विविधता आकलन और मत्स्य पालन आंकड़े शामिल हैं। इन आंकड़ों से टीम को प्रवाल से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में वैश्विक और देश-स्तर के रुझानों का आकलन करने की मदद मिली।

 प्रवाल की चट्टानें जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण आवास के रूप में जानी जाती हैं और विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होती हैं, क्योंकि समुद्री गर्मी की लहरें ब्लीचिंग घटनाओं का कारण बन सकती हैं।
 टायलर एड,
 शोध-पत्र के  लेखक और पारिस्थितिक विज्ञानी, 'मेमोरियल यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूफाउंडलैंड  



क्या लिखा है शोध-पत्र में


शोधकर्ताओं ने अपने पत्र में लिखा है कि इंडोनेशिया, कैरिबियन और दक्षिण प्रशांत में निर्वाह और वाणिज्यिक मत्स्य पालन और पर्यटन के जरिए खराब और घटती प्रवाल भित्तियों के प्रभाव पहले से ही स्पष्ट हैं। शोध दल ने यह भी  नोट किया कि जब समुद्री रक्षा क्षेत्र मौजूद भी होते हैं, तो हमेशा इसके खिलाफ बचाव नहीं करते हैं।  जैसे, वे जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं और प्रवर्तन व  समुद्री संरक्षित क्षेत्र के कर्मचारियों की क्षमता की कमी से पीड़ित हो सकते हैं। इस शोध ने स्पष्ट भी किया है कि प्रवाल भित्तियाँ मत्स्य पालन, आर्थिक अवसरों और तूफानों से सुरक्षा के माध्यम से मनुष्यों को महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती हैं।


somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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