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किलर व्हेल एक-दूसरे को सिखा रहीं मछली चुराना | Killer whales teaching each other to steal fish

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नए अध्ययन में यह सामने आया है कि किलर व्हेलों ने अपने शिकार की रणनीति को बदल लिया है और चालाकी से संगी-साथियों के साथ मछुआरों के जहाजों से पकड़ी गईं मछलियों को चुरा रही हैं।

लंबे समय तक साथ-साथ रहने वाले जीवों और प्राणियों में व्यावहारिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। बायोलॉजी लेटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में ओरका के नाम से पहचाने जाने वाली किलर व्हेलों में फीडिंग हैबिट यानी खाने की आदत बदलाव देखने को मिला है। शोधकर्ताओं ने दक्षिणी हिंद महासागर में रहने वाली व्हेल की खाने की आदतों पर 16 साल करीब से नजर डाली। किलर व्हेल एक दूसरे को इंसानी मत्स्य पालन से मछलियां चुराना सिखा रहीं हैं।

सह-अस्तित्व के लिए बदला व्यवहार

इंसानी आबादी ने दुनिया भर में अपनी उपस्थिति तेजी से बढ़ाई है, इससे जानवरों की प्रजातियों पर प्रभाव पड़ा है। दो-पैर वाले पड़ोसी के साथ सह-अस्तित्व के लिए जानवरों में अजीबोगरीब व्यवहार देखने को मिल रहे हैं। जबकि इंसानी उपस्थिति ने कई प्रजातियों को विलुप्त होने की दिशा में धकेला भी है, जिनकी उपस्थिति बची भी है, तो वह अपने व्यवहार में पिछले दो दशकों में काफी बदल गए हैं।

अवसरवादी किस्म की प्रजाति सामने आई

जो प्रजातियां लुप्त होने से बच गईं है, वे इंसानी हस्तक्षेप का लाभ संरक्षण पार्कों, अतिरिक्त सुरक्षा या फिर भोजन स्रोतों की सहज उपलब्धता के जरिए ले रही हैं। इस पक्ष का एक नजरिया यह भी है कि भोजन के लिए इन प्रजातियों की मनुष्यों पर निर्भरता शायद सबसे आम है। कुछ लोगों द्वारा सीधे खिलाया जाता है, कुछ बचे हुए पर निर्भर होती हैं और इसके बाद कुछ प्रजातियां अवसरवादी किस्म की होती हैं, जो एक कदम आगे  बढ़कर इंसानों की चीजों की चोरी करती हैं। नए शोध में इसी अवसरवादी किस्म की प्रजाति सामने आई है।

16 साल की अवधि तक निगरानी की

शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अवसरवादी किस्म की प्रजाति में किलर व्हेल को पाया है, जो ऑर्कास भी कहलाती है और शोध के जरिए एक दिलचस्प बात सामने आई है कि ये प्रजाति एक-दूसरे को सिखाती है कि किस प्रकार मत्स्य पालन से इंसानों द्वारा पकड़ी गई मछलियों को चुराया जाए। किलर व्हेल समुदाय के बीच इस व्यवहार की प्रवृत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिए शोधकर्ताओं ने दक्षिणी हिंद महासागर में क्रोजेट द्वीप समूह के तट पर रहने वाली इस प्रजाति की खाने की आदतों पर करीब से नजर डाली। शोध-दल ने 2003-2018 के बीच 16 साल की अवधि में दो उप-अंटार्कटिक किलर व्हेल की आबादी की निगरानी की।

किलर व्हेल की तस्वीरों के अध्ययन से जवाब मिले

 किलर व्हेल के आवासों के पास स्थित मत्स्य पालन  वाली जगहों में काम मछली पकड़ने के जाल से मछली चुराने के लिए मानव-कब्जे वाले क्षेत्रों में तैरते हुए इन ओर्का समूहों को अक्सर देखा जाता रहा है और सड़ी हुई मछलियों के अवशेषों को खाते देखना भी आम बात है, लेकिन शोध-दल ने बढ़ते हुए समूहों के बारे में यह भी जानने का प्रयास किया कि कई ओर्का समूह मछली चुराने के लिए अध्ययन स्थल पर मछली पालन पर छापा मार रहे थे, या यदि वही स्थानीय व्हेल सफलतापूर्वक इस तरह की छापेमारी करना सीख गई हैं। इन दोनों प्रश्नों का उत्तर खोजते हुए शोधकर्ताओं ने क्षेत्र में मछुआरों, वैज्ञानिकों और स्थानीय पर्यटकों द्वारा ली गई किलर व्हेल की तस्वीरों का अध्ययन करना शुरू किया, क्योंकि एक ओर्का को दूसरे से अलग करना बहुत आसान काम था, क्योंकि इन श्वेत-श्याम जीवों के शरीर पर अद्वितीय रंग पैटर्न होते हैं। करीब से तस्वीरों द्वारा जांच करने पर पता चला कि नए ओर्का समूहों ने भोजन की तलाश में क्षेत्र पर आक्रमण नहीं किया। बल्कि किलर व्हेल के एक ही समूह को बार-बार मत्स्य पालन पर छापा मारते हुए देखा गया था। फर्क इतना था कि उनकी संख्या में वृद्धि हुई थी, क्योंकि समूह के सदस्यों ने एक-दूसरे को देखकर और सीख कर शिल्प में महारत हासिल की थी।

मानव गतिविधियों से अभूतपूर्व परिवर्तन

अध्ययन अवधि के दौरान, शोधकर्ताओं ने देखा कि एक व्हेल की आबादी में विलुप्त होने वाले ओर्कास की संख्या 34 से बढ़कर 94 हो गई और दूसरे में 17 से 43 हो गई। ये निष्कर्ष इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि मानव गतिविधियों के कारण शिकार की उपलब्धता में परिवर्तन कैसे किलर व्हेल के बीच तेजी से और प्रगतिशील नवाचारों को जन्म दे सकता है। यहां तक कि इस शीर्ष शिकारी (टॉप प्रिडेटर) की पारिस्थितिक भूमिका में अप्रत्याशित और अभूतपूर्व परिवर्तन भी ला सकता है।

किलर व्हेल या ऑर्कास डॉल्फिन परिवार का सबसे बड़ा सदस्य है, जो पहले से ही अविश्वसनीय रूप से बुद्धिमान होने के लिए जाना जाता है। यह प्रजाति शिकार की रणनीति में समन्वय करने और जानबूझकर अपने रिश्तेदारों को नए कौशल सिखाने में सक्षम है। ऑस्ट्रेलिया के डीकिन विश्वविद्यालय की मॉर्गन एमेलोट के नेतृत्व में शोधकर्ताओं  फ्लोरियन प्लार्ड,  क्रिस्टोफ गुइने,  जॉन पी. वाई. अर्नोल्ड, निकोलस गास्को और पॉल टिक्सियर ने ओरसिनस ओरका (Orcinus orca) की आदतों का गहन अध्ययन किया। ये शोधकर्ता फ्रांस, नॉर्वे, आइसलैंड, नीदरलैंड्स से संबद्ध रखते हैं।

कई प्रणालियां हैं जिन्हें यह समझने के लिए खोजा जाना है कि किलर व्हेल ने इस व्यवहार को किस प्रकार/कैसे सीखा और यह व्यक्तियों और समूहों के बीच कैसे विस्तार पाता गया।  यह प्रणाली न केवल किलर व्हेल की आबादी में बल्कि अन्य प्रजातियों में भी मौजूद है। यह अध्ययन इस बात को  समझने के लिए एक कदम आगे है कि कैसे  यह व्यवहार (आदत) समुद्री स्तनधारियों की आबादी में फैल गया है। 
मॉर्गन एमेलोट
डीकिन विश्वविद्यालय,
ऑस्ट्रेलिया  


somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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