मत्स्य पालन, नारियल उत्पादन और पर्यटन को बढ़ावा देने के बाद लक्षद्वीप प्रशासन ने समुद्री शैवाल की खेती को आर्थिक विकास का प्रमुख साधन मानते हुए नौ द्वीपों पर इसकी खेती का केन्द्र बनाया।
लक्षद्वीप प्रशासन ने अपने नौ द्वीपों को समुद्री शैवाल की खेती के केंद्र
में बदलने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया है। संस्थान की ओर से जारी एक
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, 'द्वीपों के विकास के चालक के रूप में
समुद्री शैवाल की खेती को प्राथमिकता देते हुए, प्रशासन ने
आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के तकनीकी
समर्थन के साथ नौ द्वीपों पर समुद्री शैवाल की खेती शुरू की है।
खेती लगभग 2,500 बांस राफ्टों पर
यह पहल सीएमएफआरआई के एक अध्ययन के अनुरूप है, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य और न्यूट्रास्युटिकल्स जैसे बहुत अधिक उपयोग के लिए लक्षद्वीप के शांत और प्रदूषण मुक्त लैगून में गुणवत्ता वाली समुद्री शैवाल के उत्पादन की संभावना का पता चला है। फिलहाल स्वदेशी लाल शैवाल, ग्रेसिलेरिया एडुलिस और एसेंथोफोरा स्पाइसीफेरा की खेती लगभग 2,500 बांस राफ्टों पर की जा रही है, जिससे द्वीपों पर 10 महिला स्वयं सहायता समूहों के 100 परिवारों को लाभ मिल रहा है। द्वीपों पर उद्यम के नियोजित विकास के लिए मत्स्य पालन, पर्यावरण और वन और ग्रामीण विकास के साथ-साथ सीएमएफआरआई स्थानीय प्रशासन के विभिन्न विभागों के समन्वित प्रयासों के नेतृत्व में समुद्री शैवाल की खेती को लोकप्रिय बनाने, हितधारकों की क्षमता निर्माण करने और ऐसी खेती के प्रभाव मूल्यांकन पर लक्ष्य कर रहा है।
सीएमएफआरआई और लक्षद्वीप कृषि विज्ञान केंद्र, स्थायी समुद्री शैवाल के उद्यम को ठोस आधार देने के लिए लैगून की वहन क्षमता का आकलन करने, उपयुक्त कृषि स्थलों के स्थानिक मानचित्रण, साल भर खेती के तरीकों को मानकीकृत करने की दिशा में आगे के अध्ययन कर रहे हैं।
समुद्री शैवाल का सेवन कई देशों में किया जाता है, खासकर पूर्वी एशियाई देशों में इसका उपयोग खाद्य योजक (फूड एडिटिव्स) के रूप में होता है। इसके अलावा यह दवा, उर्वरक और कॉस्मेटिक सामान बनाने के काम आती है। इसका प्रयोग समुद्र तट के क्षरण से निपटने के लिए भी किया जाता है।
अध्ययन का लाभ
सीएमएफआरआई द्वारा हाल के अध्ययनों से लक्षद्वीप के विभिन्न लैगून में स्वदेशी समुद्री शैवाल प्रजातियों के अभूतपूर्व विकास का पता चला है, जिसमें ग्रेसिलेरिया एडुलिस की 45 दिनों में लगभग 60 गुना वृद्धि देखी गई है। इस प्रकार, 2020-21 के दौरान आशाजनक परिणामों के साथ किल्टन, चेतला कदमथ, अगत्ती और कवरत्ती के द्वीपों पर प्रायोगिक पैमाने पर परीक्षण खेती की गई।
अध्ययनों से पता चला है कि द्वीप में प्रति वर्ष लगभग 30,000 टन सूखे समुद्री शैवाल का उत्पादन करने की क्षमता है, जिसकी कीमत 75 करोड़ रु.है। इतना उत्पादन 21,290 हेक्टेयर लैगून क्षेत्र (केवल बसे हुए द्वीपों) में से केवल 1 प्रतिशत (200 हेक्टेयर) पर खेती करके पाया जा सकता है।
राष्ट्र को एक विशाल कार्बन क्रेडिट मिलेगा
वैज्ञानिक लक्षद्वीप में समुद्री शैवाल की खेती को एक क्लाइमेट-स्मार्ट पहल बता रहे हैं। इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार है। समुद्र कार्बन का प्रमुख सिंक है और समुद्री शैवाल अपने कार्बन पृथक्करण गुणों के लिए जाने जाते हैं। इस तरह बड़े पैमाने पर समुद्री शैवाल की खेती प्रति दिन लगभग 6,500 टन कार्बनडाइऑक्साइड को जब्त कर लेती है। इससे राष्ट्र को एक विशाल कार्बन क्रेडिट मिलता है, जबकि द्वीपवासियों को जलवायु के अनुरूप लचीला आजीविका मिल जाता है।
अपनी अनूठी टूना मछली और सुंदर कोरल, रीफ मछली और असंख्य अन्य जीवों के लिए पहचाना जाने वाले द्वीप अब जल्द ही भारत के समुद्री शैवाल कृषि केंद्र (हब) के रूप में जाने जा सकेंगे।डॉ के. मोहम्मद कोया, वैज्ञानिक, सीएमएफआरआई
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