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लुप्तप्रायः मानव समूह के जिनोम लिंक ने बताया, भारत से होकर गुजरा है क्रमागत विकास का रास्ता | The path of evolution has passed through India, revealed by Endangered Human group's genome link

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एक प्राचीन युवा शिकारी-संग्रहकर्ता महिला के जीवाश्म के डीएनए विश्लेषण ने दिखाया है कि इसकी समानताएं आधुनिक अंडमानी वंशजों से मेल खाती हैं। दक्षिण पूर्व एशिया से जिस जीनोम की खोज हुई है, वह इस क्षेत्र में प्रारंभिक आधुनिक मानवों  की गतिशीलता (स्थान-परिवर्तन) को दर्शाता है, जो क्रमागत विकास के नजरिए से अब तक अज्ञात था। खोज के अनुसार यह कहा जा सकता है कि इन मानवों के स्थान-परिवर्तन के रास्ते भारत से जरूर गुजरे होंगे और इसने आनुवंशिक विविधता को बढ़ाया होगा।

जिनोम में छिपे गहरे एशियाई संबंध

 क्रमागत विकास के बारे में डीएनए विश्लेषण या कार्बन डेटिंग से बेहतर कोई दूसरा रास्ता नहीं है। एक प्राचीन शिकारी-संग्रहकर्ता  महिला के डीएनए विश्लेषण का अध्ययन स्पष्ट करता है कि एक मानव वंश लगभग 37, 000 साल पहले ब्रांच अॉफ यानी मूल वंश से शाखा के रूप में  अलग हुआ था और इसकी कई समानताएं वर्तमान के पापुआन, स्वदेशी (इंडिजिनस) ऑस्ट्रेलियाई और आधुनिक अंडमानी लोगों के साथ मेल खाती है।
यह शोध इस ओर गौर करवाता है कि सुंड शेल्फ (दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी इंडोनेशिया के महाद्वीपीय मुख्य भूमि सहित) और प्लिस्टोसिन सेहुल (ऑस्ट्रेलिया न्यू गिनी) के बीच प्रारंभिक होमो सेपियंस ने स्थान परिवर्तन किया था।
शोध के परिणाम , डेनिसोवन (प्राचीन मानवों की विलुप्त प्रजाति या उप-प्रजाति माना जाता है) और जीनोम में गहरे एशियाई-संबंधित पूर्वजों का भी वर्णन है और आज इस क्षेत्र से उनके बड़े पैमाने पर विस्थापन का अनुमान लगाते हैं।

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि अब तक इस क्षेत्र से केवल दो पूर्व-नियोलिथिक मानव जीनोम अनुक्रमित किए गए हैं। दोनों मुख्य भूमि  होआबिनहियान (Hòabìnhian) (प्रागैतिहासिक दक्षिण पूर्व एशियाई आबादी और कलाकृतियों से संबंधित) शिकारी-संग्रहकर्ता क्षेत्रों 'फा फेन'(लाओस) और गुआ चा(मलेशिया) से हैं।

महाद्वीप को पार करना

आधुनिक मानव कम से कम 50 हजार साल पहले वालेसिया (इंडोनेशियाई द्वीपों) से सेहुल (मुख्य भूमि ऑस्ट्रेलिया) तक गए थे। हालांकि, वे जिन रास्तों से महाद्वीप में प्रवेश करते थे, वे निश्चित रूप से अभी तक मालूम नहीं हैं। जबकि वैलेसिया में मानव प्रजातियों के लिए सबसे पहले पुरातात्विक साक्ष्य कम से कम 45.5 हजार साल पहले के हैं, जो इंडोनेशिया की एक गुफा में सुलावेसी सूएर की कलाकृति के आधार पर मिलते हैं।  इसके अलावा एक मानव कंकाल के अवशेष हैं, जिसकी कार्बन डेटिंग 13,000 साल पहले की है।

इस मार्ग का अध्ययन करने का एक तरीका आनुवंशिक विविधता का विश्लेषण करना है। पहले के शोध ने यूरोपीय संपर्क से पहले भारतीय आबादी और ऑस्ट्रेलिया के बीच पर्याप्त जीन प्रवाह का संकेत दिया, प्रचलित दृष्टिकोण के विपरीत कि ऑस्ट्रेलिया और बाकी दुनिया के बीच कोई संपर्क नहीं था।

इस क्षेत्र के जनसांख्यिकीय मॉडल बताते हैं कि ओशियन और यूरेशियन समूहों के पूर्वजों के बीच आबादी का विभाजन लगभग 58, 000 साल पहले हुआ था, जबकि पापुआन और आदिवासी ऑस्ट्रेलियाई समूह लगभग 37, 000 साल पहले अलग हो गए थे। इस अवधि के दौरान आधुनिक मानव अज्ञात होमिनिन सहित समूहों के साथ बहुत बार मिला था।

क्या कहा है शोध-पत्र ने

शोध-पत्र ने कहा, "फा फेन और गुआ चा के दो होआबिनहियान संबंधी वनवासियों के आनुवंशिक वंश और आधुनिक अंडमानी लोगों के मध्य उच्चतम समानता दिखाते हैं।" यह शोध दर्शाता है कि मानवों का यह स्थान परिवर्तन ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचने के लिए भारतीय क्षेत्र के माध्यम से हो सकता है।

17 साल पुरानी महिला शिकारी-संंग्रहकर्ता ने दिखाया रास्ता

शोधकर्ता शिकारी-संग्रहकर्ता महिला की हड्डी पर डीएनए विश्लेषण करके इस निष्कर्ष पर पहुंचे, जो लगभग 7,000 साल पहले रहती थी। यह हड्डी इंडोनेशिया में लेएंग पैनिंगे की चूना पत्थर की गुफा में पाई गई थी। शोधकर्ताओं ने हड्डी के पाउडर से प्राचीन डीएनए निकाला और पाया कि टॉलियन वनवासी एक 1718 वर्ष पहले की महिला थी, जिसमें मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलो-मेलनेशियन की समीपता पाई गई।
शोध-पत्र के अनुसार, " लेएंग  पैनिंगे व्यक्ति के जीनोम के बडे़ स्तर पर किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश अनुवांशिक बहाव न्यू गिनी और एबोरिजिनल ऑस्ट्रेलिया के वर्तमान समूहों के साथ मेल खाता है। हालांकि, यह टोलियन-संबंधित जीनोम पहले से अघोषित वंश का प्रतिनिधित्व करता है, जो उस समय के आसपास पापुआन और स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाई समूह के अलग होने पर बना था। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि यह संभव है कि इस टोलियन (इंडोनेशियाई) व्यक्ति ने स्थानीय वंश चलाया था, जो कभी आधुनिक ऑस्ट्रेलिया में जाने से पहले सुलावेसी में मौजूद था।

somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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