भारत में सौर मिशन की तैयारियां तेज हो चुकी है। खगोलविद अध्ययनों और आंकड़ों के जरिए सौर वातावरण के प्रभावों को समझने के लिए मेहनत कर रहे हैं। अगले साल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा आदित्य एल-1 सूर्य पर भेजा जाएगा। एेसे में मिशन को लॉन्च करने से पहले कई संभावित जानकारियां लेकर एक नया शोध सामने आया है कि कैसे पृथ्वी का संचार नेटवर्क और उपग्रहों को संचालित करने वाली मशीनरी सौर विस्फोटों (कोरोनल मास इजेक्शन) से निकले वजनी टुकड़े प्रभावित करेंगे।
कोरोनल मास इजेक्शन का पृथ्वी पर रेडियो संचार नेटवर्क पर असर
कोरोनल मास इजेक्शन सूर्य की सतह से सबसे बड़े विस्फोटों में से एक है जिसमें सूर्य से निकले एक अरब टन वजनी टुकड़े अंतरिक्ष में कई मिलियन मील प्रति घंटे के वेग से प्रवाहित होते हैं। यह सौर सामग्री इंटरप्लेनेटरी माध्यम से प्रवाहित होती है, जो किसी भी ग्रह या अंतरिक्ष यान को उसके रास्ते में प्रभावित करती है। जब वास्तव में एक मजबूत सीएमई पृथ्वी से आगे बढ़ता है, तो यह हमारे उपग्रहों में इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान पहुंचा सकता है और पृथ्वी पर रेडियो संचार नेटवर्क को बाधित कर सकता है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए), बेंगलुरु के डॉ वागीश मिश्रा के नेतृत्व में खगोलविदों की एक टीम ने दिखाया कि सूर्य से सीएमई के प्लाज्मा गुण और पृथ्वी के आने का समय काफी भिन्न हो सकता है। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मासिक नोटिस में प्रकाशित शोध वर्ष 2011 के दौरान इंटरप्लेनेटरी कोरोनल मास इजेक्शन (आईसीएमई) संरचनाओं के अवलोकनों के अध्ययन पर आधारित है।
टीम ने नासा के स्टीरियो अंतरिक्ष यान और सूर्य-पृथ्वी रेखा पर पहले लैग्रैंजियन बिंदु (L1) के पास स्थित LASCO कोरोनोग्राफ के डेटा के साथ पृथ्वी-निर्देशित सीएमई और आईसीएमई का अध्ययन किया। खगोलविदों ने सीएमई और आईसीएमई के 3डी दृश्य का पुनर्निर्माण किया जो 11 मार्च को हुआ और 6 अगस्त 2011 को पृथ्वी पर आया।
टीम ने सौर मंडल में तीन स्थानों पर सीटू में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध प्लाज्मा माप तक पहुंच के साथ पृथ्वी-निर्देशित सीएमई और सीएमई के इंटरप्लानेटरी समकक्षों का अध्ययन किया। उन्होंने सीएमई और आईसीएमई के 3डी दृश्य का पुनर्निर्माण भी किया, ताकि मल्टी-पॉइंट रिमोट और इन सीटू अवलोकनों का उपयोग कर हेलियोस्फीयर में उन स्थानों पर आईसीएमई संरचनाओं की गतिशीलता, आगमन समय, प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र के मापदंडों में अंतर की जांच की जा सके , खास तौर पर उस स्थान पर जहां विभिन्न उपग्रह स्थित हैं। टीम के अनुसार, सूर्य सौर पवन (सोलर विंड) नामक आवेशित कणों की एक सतत धारा का उत्सर्जन करता है। वर्तमान शोध में खगोलविदों ने दिखाया कि प्लाज्मा गुण और सूर्य से सीएमई के पृथ्वी आगमन का समय काफी भिन्न हो सकता है।
रॉयल एस्ट्रोनॉमी के मासिक नोटिस में प्रकाशित इस शोध के सह-लेखक कुंजाल दवे हैं, जो सी.यू. शाह विश्वविद्यालय, प्रोफेसर नंदिता श्रीवास्तव ( भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला) और जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर सिस्टम रिसर्च के प्रोफेसर लुका टेरियाका हैं।
नया अध्ययन चंद्रयान-2 द्वारा सूर्य की आंतरिक परतों को देखने और वैज्ञानिकों द्वारा सूर्य के वायुमंडल से विस्फोट के चुंबकीय क्षेत्र को मापने के हफ्तों बाद आया है। यह अध्ययन रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मासिक नोटिस में प्रकाशित हुआ। अध्ययन आईसीएमई के स्थानीय प्रेक्षणों को एक सीटू अंतरिक्ष यान से उसकी वैश्विक संरचनाओं से जोड़ने में आने वाली कठिनाइयों पर प्रकाश डालता है और बताता है कि हेलियोस्फीयर में किसी भी स्थान पर बड़ी सीएमई संरचनाओं की सटीक भविष्यवाणी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह नई समझ अंतरिक्ष मिशनों के डेटा की व्याख्या में मदद करेगी।
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