इंसानों की गतिविधियों की बढ़ती रफ्तार ने महासागरों, सागरों, नदियों और नालों तक के जल-जीवों को प्रभावित किया है। नए अध्ययन ने खुलासा किया है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से उत्पन्न जल के भीतर का प्रदूषण इतना बढ़ा कि उसने वहां के रहवासी कछुओं को क्षति पहुंचानी शुरू की है।
जल के भीतर का प्रदूषण
अब तक कछुओं को नुकसान पहुंचाने वाले कारणों में प्लास्टिक की थैलियां, मछली पकड़ने के जाल, जहाजों से रिसने वाला तेल है, लेकिन इस सूची में नया कारण जुड़ा है, जिसकी वजह है इंसानी गतिविधियों के कारण पैदा होने वाला जल में बढ़ने वाला शोर। यह एक जबरदस्त जल के भीतर का प्रदूषण है और नए शोध के अनुसार जल में रहने वाले कोमल जीवों में सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा रहा है।
कछुओं की दो गैर-खतरे वाली प्रजातियों पर प्रयोग
पानी चाहे मीठा हो या नमकीन हो, लेकिन पानी के भीतर के वातावरण यह शोर पहले से ही मछलियों, व्हेल, स्क्विड और कई अन्य जल-जीवों की प्रजातियों को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है, लेकिन इस पर अब तक कोई विशेष अध्ययन सामने नहीं आया। इस कमी को पूरा किया है अमेरिका में वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के एक शोधकर्ता एंड्रिया सालास ने, जिन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मीठे पानी के कछुओं की दो गैर-खतरे वाली प्रजातियों पर प्रयोग किए।
फ्रिक्वेंसी के आधार पर श्रवण क्षमता मापी
शोध-दल ने ध्वनियों के संपर्क में आने पर कछुओं की श्रवण प्रणाली को चुना और इस प्रणाली के जरिए प्रत्येक मिनट के विद्युत वोल्टेज का पता लगाने के लिए कछुए के कान के ऊपर की त्वचा के नीचे न्यूनतम इनवेसिव इलेक्ट्रोड डाले। उन्होंने कछुओं की पानी के नीचे की सुनने की क्षमता की सबसे कम स्तर को भी मानक के रूप में स्थापित किया, ताकि कछुए कौन सी आवृत्तियों (frequencies) को सबसे अच्छा सुनते हैं, यह पता चल सके।
इसके बाद, कछुओं को उच्च आयाम वाले शोर के संपर्क में लाया गया। सम्पर्क में आने के बाद, शोधकर्ताओं ने कछुओं की श्रवण क्षमता को लगभग एक घंटे तक मापा, यह देखने के लिए कि उन्होंने अल्पावधि में अपनी पानी के नीचे की सुनने की क्षमता को कैसे फिर से पाया, इस बात का पता लगाने के लिए दो दिन बाद एक और जांच की गई।
सुनने की क्षमता प्रभावित हुई
सालास के शोध-परिणामों ने संकेत दिए कि कछुओं ने सुनने की क्षमता के नुकसान का अनुभव किया जो 20 मिनट से 60 मिनट के दायरे मेें रहा। कुछ को एक घंटे से अधिक समय लगा, जबकि एक कछुए की सुनवाई कई दिनों तक प्रभावित रही। शोध दल के लिए यह आश्चर्य से कम नहीं है कि शोर के अपेक्षाकृत कम स्तर ने भी कछुओं की सुनवाई को प्रभावित किया, यह देखते हुए कि यह क्षमता उनके संचार और शिकारियों से बचने के लिए महत्वपूर्ण है। शोध-दल का संकेत है कि इन निष्कर्षों के कुछ खतरे अन्य कछुओं की प्रजातियों के अस्तित्व के लिए कुछ प्रमुख कारक हो सकते हैं।
हमारे प्रारंभिक निष्कर्ष इस बात का समर्थन करने वाले पहले कारण हैं कि तीव्र शोर के संपर्क में आने के बाद ये जीव पानी के नीचे सुनने की क्षमता की हानि के लिए भेद्य हैं।ए. सालास,प्रमुख शोधकर्ता, वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन, अमेरिका
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