कीटनाशकों से नुकसान का असर कई पीढ़ियों तक हो सकता है, एेसी उन प्रजातियों के नुकसान बढ़ सकता है जो एकांत रहते हैं, खेतों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेशकीमती होते हैं और खासतौर से परागण करते हैं।
नए शोध ने फिर से कीटनाशकों से होने वाले नुकसान की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इस बार शोध मधुमक्खियों पर किया गया था। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता क्लारा स्टलीग्रॉस और उनके सहयोगियों ने अध्ययन के माध्यम से मधुमक्खी की प्रजातियों के प्रजनन पर एक प्रमुख कीटनाशक के हानिकारक प्रभावों का पता लगाया है।
अध्ययन में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि ऐसे कीट, जो मधुमक्खियों की अधिकांश प्रजातियों को बनाने में सहायक होते हैं, वे यौगिकों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। नेचर वर्ल्ड में प्रकाशित एक खबर में इस अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि पुरानी कीटनाशक विषाक्तता मधुमक्खियों पर ख़तरनाक असर डाल सकते हैं। सबसे अधिक नुकसानदेह कीटनाशक मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचाने वाले सभी प्रकार के कीटनाशकों में से एक विशेष रूप से खतरनाक है। इस नियोनिकोटिनोइड्स के रूप में जाना जाता है, इस मिट्टी पर छिड़काव करते हैं या फिर बीजों पर लीपा जाता है। यह कीटनाशक पौधों के ऊतकों में प्रवेश करते हैं, अंततः पराग और फूलों के रस में दिखाई देते हैं। इनके सेवन से मधुमक्खियों में सीखने और याद रखने की क्षमता पर असर पड़ता है।
दो साल का फील्ड प्रोजेक्ट अध्ययन के लिए स्टलीग्रॉस और उनके सहयोगी पारिस्थितिकीविद् नील विलियम्स ने ओस्मिया लिग्नारिया प्रजाति यानी नीली बाग मधुमक्खी को चुना। यह उत्तरी अमेरिका की एक एकांत प्रजाति है, जिसका उपयोग किसान कभी-कभी बादाम और अन्य फलों के पेड़ों को परागित करने के लिए करते हैं।
अध्ययन दल ने छोटी कारनुमा 16 पिंजरों की बनाए, इनमें मधुमक्खियों के खाने के लिए वाइल्डफ्लावर की तीन प्रजातियां लगाईं गई। आधे पिंजरों में, उन्होंने मिट्टी को इमिडाक्लोप्रिड से भीगा दिया, जैसा कि किसान इस सामान्य नियोनिकोटिनोइड के साथ करते हैं। प्रत्येक पिंजरे में आठ मादा मधुमक्खियों के साथ 16 नर थे और उन्हें घोंसले के लिए जगह और मिट्टी की आपूर्ति की गई। जो कि कीट छेद के अंदर अपने बच्चों के लिए कोशिकाओं को बनाने के लिए उपयोग करते हैं। अन्य एकांत में रहने वाली मधुमक्खी प्रजातियां भी ऐसा करती हैं। मादाओं के प्रजनन के बाद, उन्होंने छिद्रों के अंदर अंडे दिए। प्रत्येक अंडे को पराग और फूलों के रस की एक सेज प्रदान की गई और उन्हें मिट्टी से बनी अलग-अलग कोशिकाओं में बंद कर दिया गया। इस दौरान मादाएं खुद कीटनाशक-दूषित पराग और रस का सेवन कर रहीं।
अवलोकन के बाद देखा गया कि उनमें सुस्ती आ गई और उन्हें अपने छिद्रों को खोजने में अधिक समय लगता है और उन्होंने स्वस्थ मधुमक्खियों की तुलना में कम अंडे दिए। अध्ययनकर्ताओं को उनके अस्वस्थ होने का अंदेशा हुआ था। नतीजों पर गौर किया जाए, तो कीटनाशकों का सेवन करने वाली मधुमक्खियों की संतानों की तुलना में 30 फीसदी कम संतानें हुईं, जो कि कीटनाशकों के बिना बड़ी हुई थीं। कीटनाशकों के साथ पहले के सम्पर्क के प्रभाव का पता लगाने के लिए, स्टलीग्रॉस ने अगले साल फिर से कुछ पिंजरों का उपयोग किया। इसमें देखा गया कि प्रजनन क्षमता और भी अधिक प्रभावित हुई। दो वर्षों के दौरान दोहरी खुराक वाले कीट से और अधिक नुकासन हुआ, मधुमक्खियों ने पहले की तुलना में लगभग 20 फीसदी कम अंडे दिए। दो साल के फील्ड प्रोजेक्ट के नतीजे एेेसे वक्त आए हैं, जब कीट-विज्ञानी और पारिस्थितिकीतंत्रविद दुनिया भर में कम से कम आंशिक रूप से मधुमक्खियों की गिरावट की व्याख्या कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस ओर नियामक लाने पर जोर दिया जाना चाहिए, क्योंकि एकांत में रहने वाली मधुमक्खियों के लिए नियोनिकोटिनोइड बहुत खराब हैं।
दो पीढ़ियों के दौरान, मधुमक्खी प्रजनन क्षमता को नुकसान होता है। मधुमक्खियों की संतानों की संख्या लगभग 75 फीसदी कम होने के आसार होते हैं।प्रजनन क्षमता में इस तरह की कमी से वास्तविक दुनिया में आबादी में लंबे समय तक गिरावट हो सकती है, जहां मधुमक्खियों को शिकारियों से संरक्षित नहीं किया जाता है या असीमित भोजन तक आसान पहुंच प्रदान नहीं की जाती है।
स्टलीग्रॉस , मुख्य शोधकर्ता, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय।
एक टिप्पणी भेजें
एक टिप्पणी भेजें