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मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं को ब्रेन ट्यूमर का खतरा नहीं | No risk of brain tumours for mobile phone users

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यह हमेशा से मोबाइल फोन धारकों के लिए चिंता का विषय रहा है कि फोन से निकलने वाली तरंगों से मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है। हमेशा आशंका जताई जाती है कि स्मार्टफोन की नई तकनीकों से कैंसर और ब्रेन ट्यूमर की समस्याओं का जोखिम बढ़ता है, लेकिन नए अध्ययन ने इसे खारिज किया है। नया अध्ययन कहता है कि  मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों को ब्रेन ट्यूमर के बढ़ने का खतरा नहीं होता है।

ऑक्सफोर्ड पॉपुलेशन हेल्थ और आईएआरसी के शोधकर्ताओं ने मोबाइल फोन के उपयोग और ब्रेन ट्यूमर के जोखिम के बीच के संबंध की जांच करने के लिए यूके के एक बड़े संभावित अध्ययन (एक अध्ययन जिसमें प्रतिभागियों को इस बीमारी के विकास से पहले नामांकित किया गया है) के नतीजों की सूचना जारी की है, ये नतीजे जर्नल अॉफ द नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में प्रकाशित हुए हैं।

आशंका रहती है कि तरंगों से नसों को नुकसान न हो जाए

हाल ही में 5G मोबाइल वायरलेस तकनीकों के लॉन्च के बाद से आशंका होने लगी है कि मोबाइल फोन का उपयोग करने से ब्रेन ट्यूमर विकसित होने का जोखिम बढ़ सकता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि मोबाइल फोन रेडियोफ्रीक्वेंसी तरंगों का उत्सर्जन करते हैं, जिनसे ऊतकों को नुकसान हो सकता है। अगर ये तरंगों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं, तो नसों के गर्म होने और फटने का खतरा हो सकता है।

किस प्रकार हो सकता है ब्रेन ट्यूमर

 मोबाइल फोन सिर के पास रखकर इस्तेमाल किए जाते हैं, और जो रेडियोफ्रीक्वेंसी तरंगें उनसे उत्सर्जित होती हैं, वे मस्तिष्क में प्रवेश करती हैं।इनसे सबसे अधिक खतरा टेम्पोरल और पेरिटल (पार्श्विका)  लोब को होता है। यह एक बड़ी आशंका को जन्म देता है कि मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं में ब्रेन ट्यूमर विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है। अभी तक जितने भी अध्ययन सामने आए हैं, वे रेट्रोस्पेक्टिव तौर पर कैंसर की पहचाीन होने पर उपयोगकर्ता को मोबाइल फोन के इस्तेमाल के साथ जोड़ते हैं। इससे नतीजा पक्षपाती हो सकता है, क्योंकि इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने रेडियोफ्रीक्वेंसी तरंगों को 'संभवतः कार्सिनोजेनिक' के रूप में वर्गीकृत कर रखा है।

यूके में महिलाओं पर किया गया अध्ययन

हाल ही में जर्नल अॉफ द नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में एक अनोखे अध्ययन के नतीजे प्रकाशित हुए हैं, जिसमें ऑक्सफोर्ड पॉपुलेशन हेल्थ और आईएआरसी के शोधकर्ताओं ने मोबाइल फोन के उपयोग और ब्रेन ट्यूमर के जोखिम के बीच के संबंध की जांच करने के लिए यूके के एक बड़े संभावित अध्ययन (एक अध्ययन जिसमें प्रतिभागियों को इस बीमारी के विकास से पहले नामांकित किया गया है) के नतीजों की सूचना जारी की है।
मुख्य नतीजे :
  1.   2011 तक, 60 से 64 वर्ष की आयु की लगभग 75% महिलाओं ने मोबाइल फोन का उपयोग किया और 75 से 79 वर्ष की आयु की महिलाओं में 50% से कम उपयोग रहा।
  2.  14 साल की फॉलो-अप अवधि में, 3,268 (0.42%) महिलाओं में ब्रेन ट्यूमर विकसित हुआ।
  3.   उन लोगों के बीच ब्रेन ट्यूमर विकसित होने के जोखिम में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था, जिन्होंने कभी मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं किया था और जो मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे थे। इनमें अस्थायी और पार्श्विका लोब में ट्यूमर शामिल थे, जो मस्तिष्क के सबसे अधिक एक्सपोज हिस्से हैं।
  4.  उन लोगों के लिए किसी भी प्रकार के ट्यूमर के विकास के जोखिम में कोई वृद्धि नहीं हुई, जो रोजाना मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते थे और सप्ताह में कम से कम 20 मिनट मोबाइल पर बात करते थे और/या 10 साल से अधिक समय से मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते थे।
  5.  मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं में दाएं तरफ और बाएं तरफ के ट्यूमर की घटनाएं समान थीं, भले ही मोबाइल फोन का उपयोग बाएं तरफ की तुलना में दाईं ओर काफी अधिक होता है।
somadri
पुराने ब्लॉग-पोस्टों को नवीनतम रूप दिया जा रहा है, जो मेरे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समर्पित पोर्टल *सोम-रस* पढ़े जा सकेंगे। Study Observes Mysteries- Research Accelerates Science का संक्षिप्तीकरण है SOM-RAS, जिसकी अवधारणा 2007 में की गई थी, थोड़ा-बहुत लिखना भी हुआ, बाकी अभी भी डायरी के पन्नों में सिमटा हुआ है, डिजाइन से लेकर कंटेंट संयोजन तक। पुराने पोस्ट में मनो-विज्ञान से संबंधित अनुभवों और संस्मरण लिखती रही। नियमित लेखन नहीं हो सका, कुछ समयाभाव में , तो कुछ आलस में। पराने पोस्ट नए कलेवर में सोम-रस के सब-डोमेन में उपलब्ध होंगे। मेरा विज्ञान और साहित्य के प्रति नैसर्गिक झुकाव रहा है। संक्षेप में, मैं हूँ पेशे से पत्रकार, पसंद के अनुसार ब्लॉगर, जुनून के हिसाब से कलाकार, उत्कटता की वजह से लेखक, आवश्यकता के लिए काउंसलर | पर, दिल से परोपकारी और प्रकृति से उद्यमी हूं।

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